किस्सा कचोरी का…

रविवार का था वह एक आम सा दिन,
दूरदर्शन पर चल रहा था चंद्रकांता, कैसे रहते लोग कड़क सी चाय के बिन.
चाय के साथ था कुछ खस्ता, रस्क, और नमकीन,
पर जब घर आई कचोरी और जलेबी, तब खिस्की ज़बान तले ज़मीन.

समोसा, आलू बोंडा और मंगोड़े भी देते है टक्कर,
पर कौन रह सकता है कचोरी के स्वाद से बचकर.

कचोरी कई बार अपना रूप बदलती,
राजस्थान मैं पूरी तो गुजरात मैं लड्डू बनती.
रूप के संग इसका ह्रदय भी बदलता
कभी मूंग कभी आलू कभी प्याज और कभी मटर से इसका दिल है धड़कता.

दिल्ली मैं चाट की शोभा बढाती राजकचोरी,
या दही सौंठ के अभिषेक से बनी दही कचोरी
उत्तर प्रदेश मैं आलू रस्सा संग रस रचाए
कचोरी हर रंग रूप मैं हमें है भाये.

इंदौर मैं सराफे का वजन,
या कोटा-जयपुर मैं इसका प्याज से लगन
गंगा मैय्या किनारे मोहन पूरी वाला,
कचोरिया ऐसी जुग जुग जिए बनाने वाला.

मेरा तो है बस यही अंतिम विचार,
कचोरी के है चार यार
चटनी, सौंठ, दही और तलने वाले का प्यार.

-अभिषेक ‘देसी’ देशपांडे

Comments

One response to “किस्सा कचोरी का…”

  1. Rathod Avatar

    You’ve raelly impressed me with that answer!

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