हम प्यार करते थे उनसे बेशुमार,
उनके इश्क मैं हुए थे बीमार
हमे लगा वो भी है उतनी ही बेक़रार,
कर बैठे प्यार का इज़हार.
फिर क्या कहे क्या हुआ
अच्छे खासे दिल का मालपुआ हुआ,
दिल तो हमारा था कोमल और नाज़ुक
पर जब टूटा तो आवाज़ आई जैसे चले कोई चाबुक,
कांच की तरह टुकड़े हुए उसके हज़ार,
सारे अरमानो का हुआ मच्छी बाज़ार.
काश ये दिल न होता कांच जैसा brittle
और हर बार ना होते इसके टुकड़े little little,
अगर ये होता Tupperware जैसा मज़बूत
गिर पड़ संभल कर भी रहता साबुत,
प्यार की गर्मी और चाहत की सर्दी झेलता
हर मौसम येह ख़ुशी ख़ुशी खेलता,
हर सप्ताह नयी नयी गृहणियो के संग पार्टी मनाता
कुंवारी ना सही, शादीशुदा का ही संग पाता.
पर क्या करे यही है कुदरत का न्याय,
Tupperware के दिल का कभी ना खुल सकेगा अध्याय… कभी ना खुल सकेगा अध्याय.
Dedicated to all the losers in the world :)…
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