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रविवार का था वह एक आम सा दिन, दूरदर्शन पर चल रहा था चंद्रकांता, कैसे रहते लोग कड़क सी चाय के बिन. चाय के साथ था कुछ खस्ता, रस्क, और नमकीन, पर जब घर आई कचोरी और जलेबी, तब खिस्की ज़बान तले ज़मीन. समोसा, आलू बोंडा और मंगोड़े भी देते है टक्कर, पर कौन रह…
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आने वाला है क्रिकेट इतिहास का एक अमर क्षण जब होने चलते स्वयं के टेस्ट के पूरे दो हज़ार रन, १८७७ मैं शुरू हुई थी जो प्रथा २०११ मैं क्या हो गयी है इसकी व्यथा. अंग्रेजो ने नीव रखी क्रिकेट के खेल की खेल खेल मैं उन्होंने फैलाई सभ्यता ब्रिटेन की, शुरू मैं था बस…
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विस्फोट, तुम फिर आ गए! जीवन की कीमत तो तुमने समझी नहीं कम से कम भय की परिभाषा तो समझ लेते. मुंबई शहर में लोग हर क्षण है मरते ज़िन्दगी की भागदौड़ में दबते कुचलते इस भाग दौड़ थकान के बीच किसे है समय भयभीत होने का. भय है बढती महंगाई का, नौकरी का, भय…
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[Today I came across this mail, my first group work at SP, with the bestest group I ever worked with at SP. I still recall our first meeting, a gyaani tungi, Lal in don’t care mode with his red-white tshirt, Monik shouting at the top of his voice, and Nitika sitting in a pink top…
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Today I received an article from a friend of mine, Where did conversation go? No where. It talks about the “about-to-die” habit of having conversations. It also debates whether forms of new media have eclipsed the intimacy of having a one-on-one, or sharing a happy moment together. So is it the end of the Chai-Biscuit…
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हम प्यार करते थे उनसे बेशुमार, उनके इश्क मैं हुए थे बीमार हमे लगा वो भी है उतनी ही बेक़रार, कर बैठे प्यार का इज़हार. फिर क्या कहे क्या हुआ अच्छे खासे दिल का मालपुआ हुआ, दिल तो हमारा था कोमल और नाज़ुक पर जब टूटा तो आवाज़ आई जैसे चले कोई चाबुक, कांच की…
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महिना था फरवरी का, समय था वोह अफरा तफरी का Placement का चल रहा था त्यौहार, क्योकि आजकल वही तो रह गया है प्रबंधन शिक्षा का सार. मैं बैठा था interview कक्ष मैं, सवालों से जूझता कभी हँसता, कभी लडखडाता अचानक मुझसे पुछा गया, आप लगते है कहानीकार हम देखना चाहते है आपके विचार. मैंने…
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गुमसुम गुमसुम… लाल लाल, नरम नरम, इस टमाटर मैं है बड़ा दम. जब टमाटर ketchup बन जाता, हर टेबल की यह शोभा बढाता. पकोड़े हो या पिज़्ज़ा, समोसा हो या आमलेट, टमाटर है कुदरत की एक भेंट. पर जब इंसान को हक है अपना जीवन जीने का, तो क्या टमाटर को हक नहीं अपनी राह…