पलायन

घूमता-खोजता, चलता-फिरता,
फिर निकल चला मैं।
पहले शिक्षा, फिर नौकरी,
फिर शिक्षा और दूसरी नौकरी।
कभी क़स्बा, कभी शहर,
कभी देश, कभी विदेश।
हर जगह संभावनाएं खोजता,
कभी दुसरो को, कभी खुद को ढ़ुंढ़ता।
प्रवासी कहिये या अप्रवासी,
जड़ो से उजड़ा हुआ कहिये या जड़हीन।
घूमता-खोजता, चलता-फिरता,
फिर निकल चलूँगा मैं।

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