रविवार का था वोह दिन,
जब रह ना पा रहा था भोजन तकनीक के बिन.
यह दिन का हसने का, मिलने जुलने का,
संगणक और इन्टरनेट से बाहर निकल, हर व्यक्ति विशेष से मिलने का.
Nokia का नाम देख याद आयी मुझे उस प्रसिद्द नागिन की चाल,
सरलता और सुदृढ़ता के बल पर जिस Nokia ने किया था अपने दुश्मनों का बुरा हाल.
३२१०, ११००, २१०० और इ-७२ से जुडी वोह सुनहरी यादें,
Nokia की धुन की आड़ में पनपता प्रेम और कसमें वादें.
Nokia से ध्यान हटा तो दिखा एक मंच सुस्सजित एवं बड़ा,
एक तरफ था भारत का तकनिकी-गुरु, तो दूसरी ओर जूनून का प्रमुख-रसोईया था खड़ा.
इन दोनों में से किसी एक का पक्ष लेना तो था नामुमकिन,
एक फूल दो माली वाली थी समस्या एक हसीन.
एक तरह से अच्छा ही हुआ मुझे मंच पर नहीं बुलाया,
नहीं तो फूल तो क्या fool बना कर राजीव ने रहता मुझे सताया.
लाल सोमरस के प्यालो के साथ संध्या धीरे धीरे रही थी बढ़,
नशे के साथ तकीनीकी एवं पाककला का ज्ञान भी दिमाग पे रहा था चढ़.
समां भी बंध सा गया था, कुछ चेहरे थे जाने कुछ अनजाने,
ब्लॉग की दुनिया से निकल कर, आधे तो आये थे ताज के भोजन के बहाने.
फिर जैसे ही app आयी, आयी बहार,
Chaplin महोदय की चाल चलते विकास हो, या चित्रो में चेहरों का होता संहार.
मुझे पता है कुछ apps ऐसी हैं जिनमे बसी है मेरी जान,
क्योकि वोह मेरे दोनों शौक पूरे करे – भोजन और सामान्य ज्ञान.
फिर गरिष्ट भोजन, तस्वीरों और अच्छी बातो के साथ ख़तम हुई वोह शाम,
ज्यादा खा-पी लिया, अब सिर्फ आएगा Eno काम.
-अभिषेक ‘देसी’ देशपांडे
Nokia AppTasting और Indiblogger को मेरी तरफ से एक छोटी सी भेंट.
कृपया ध्यान दे:
Technology शब्द के लिए मैंने तकनीक का प्रयोग किया, मैं प्रौद्योगिकी और तकनीक के बीच झूल रहा था. भाषा में हुई किसी भी गलती के लिए माफ़ी चाहूँगा. इस बात पे मुझे हृषिदा की चुपके चुपके का एक संवाद याद आ गया:
भाषा अपने आप में इतनी महान होती हैं की कोई उसका मजाक उड़ा ही नहीं सकता.
Featured image by Shivani: निखिल, विकास, मैं और विकास में पूरी तरह खोयी हुई कन्यायें.
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