महिना था फरवरी का,
समय था वोह अफरा तफरी का
Placement का चल रहा था त्यौहार,
क्योकि आजकल वही तो रह गया है प्रबंधन शिक्षा का सार.
मैं बैठा था interview कक्ष मैं, सवालों से जूझता
कभी हँसता, कभी लडखडाता
अचानक मुझसे पुछा गया,
आप लगते है कहानीकार
हम देखना चाहते है आपके विचार.
मैंने उठायी कागज़ कलम,
सोचा प्रस्तुत करू हास्य रस, या फिर थोडा गम
विचारों की धारा बहने लगी
मेरी इस नौकरी को प्राप्त करने और हैदराबाद जाने की इच्छा बढ़ी.
बिरयानी की आई महक,
मन न जाने क्यों मेरा गया चहक
चिरंजीवी का आया विचार,
तेलुगु सिनेमा की जय जयकार
वोह चावल का ढेर, पप्पू के संग,
गोंगुरा का अचार जमाएगा रंग*
चार मीनार की वोह गलिया,
जहा पकेगा इश्क का दलिया
पर इश्क के लिए तो चाहिए लड़की,
तेलुगु सीखे बिना छाएगी कडकी
सोचा मैंने यह सब करूँगा,
तेलुगु सीख, लड़की पटा कर, शादी करूँगा.
कुछ वक्त पश्चात आई यह खबर,
मिली नौकरी छायी ख़ुशी इस कदर
पर फिर मैं रहा गया मुंबई नगरी,
न गया हैदराबाद न छायी प्यार की बदरी.
आज विचार आया की काश कुछ ऐसा होता,
मुह मैं डबल का मीठा और संग साथी अनूठा होता
मुंबई की गलिया नाप नाप कर मैं हु थका
यह था मेरा अनोका रिश्ता, जो हो न सका… हो न सका.
* Pappu is thickish daal served usually in Andhra meals. Gongura is a super tasty pickle served along with rice and pappu and sambhar and the crispy veggies in an awesome andhra meal.
This poem is dedicated to the wonderful lady who made me write this story in interview and all the awesome Hyderabadi/Andhra people.
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